Tuesday, May 26, 2009

जयपुर

राजस्थान पर्यटन की द्र्श्टी से पूरे विश्व में एक अलग स्थान रखता है लेकिन शानदार महलों,ऊंची प्राचीर व दुर्गों वाला शहर जयपुर राजस्थान में पर्यटन का केंद्र है। यह शहर चारों ओर से परकोटों (दीवारौं) से घिरा है,जिस में प्रवेश के लीये 7 दरवाजे बने हुए हैं 1876 मैं प्रिंस आफ वेल्स के स्वागत में महाराजा सवाई मानसिहं ने इस शहर को गुलाबी रंग से रंगवा दीया था तभी से इस शहरका नाम गुलाबी नगरी (पिंक सिटी) पड़ गया। जयपुर के कछ प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं हवा महल, जयगढ़ किला, आमेर, सिटी पैलेस, जंतर मंतर, जल महल आदि ।

आमेर का किला

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इस किले का निर्माण राजा मानसिंह ने 1952 में करवाया था उसके बाद के कई राजाओं ने किले के विस्तार का काम करवाया । इस किले में नक्काशीदार जालीयों ओर बारीक शीशों का नायाब काम कीया हुआ है । आमेर के अंदर बना शीशमहल देखने लायक हे ओर दीवान-ए-आम व सुखनिवास महल भी आकर्शण के केंद्र हें । किले तक पहुंचने के लीये हाथी की सवारी भी की जा सकती है ।

हवा महल

हवा महल का निर्माण 1799 में महाराज सवाई प्रताप सिहं ने सिर्फ इसलीये करवाया था ताकि रानीयां व राजकुमारीयां विशेष मोकों पर निकलने वाले जुलूस व शहर आदि को देख सकें । शहर की चारदीवारी के बीच स्थित इस खूबसूरत भवन में 152 खिड़कीयां व जालीदार छज्जे हैं यह भवन राजपूत व मुगल कला का शानदार नमूना है इसमे बनाए गए अनगिनत हवादार झरोखोंके कारण इसका नाम हवा महल पड़ा ।

सिटी पैलेस

राजस्थानी व मुगल शिल्प की रचना सिटी पैलेस शहर के बीचौं बीच स्थित है । सफेद अंदर संगमरमर के खंबों पर टिके नक्काशीदार मेहराब व रंगीन पत्थरौं की आकर्शक कलाक्रतीयौं से सजे प्रवेश द्वार हैं। इसमें एक म्युजियम भी है जिसमे राजस्थानी व मुगलौं की पोशाकौं, हथियारों, मीनाकारी व जवाहरातों के जडा़ऊ काम वाली तलवारों का संग्रह है । महल में एक कलादीर्धा भी है जिसमे कालीनों व शाही साजो सामान का दुर्लभ संग्रह है । सिटी पैलेस के बीच स्थित चंद्र महल से बगीचे व शहर का खूबसूरत नजारा लीया जा सकता है ।

जल महल

jal mahal आमेर जाते समय रास्ते मे पड़ती है मानसागर झील उसके बीच बने हुए महल को कहा जाता है जल महल । शाम के समय यहां का नजारा बडा़ ही सुंदर होता है यहां अक्सर पर्यटकों की भीड़ बनी रहती है

जंतर मंतर

jantar mantar सिटी पैलेस के बाहर एक खुले मैदान में बनी इस वेधशाला क निर्माण राजा जय सिंह द्वतीय ने 1724 में करवाया था जो उस समय बनी देश भर की 5 वेधशालाओं में सबसे विशाल है इसके जटिल यंत्रों का उपयोग समय, सूर्योदय एंव सूर्यास्त, तारों एंव नछत्रों की स्थिती, तथा सूर्य की दूरी को नापने के लीये कीया जाता था । आज भी ये यंत्र नक्षत्रों सटीक गंणना करने मे सक्षम है । इनमें कुछ से कुछ यंत्रों का इस्तेमाल आज भी कीया जाता है । इसके अलावा जयपुर में अल्बर्ट हाल, बिड़ला तारा मंडल व चोखी ढाणी देखने लायक हें ।

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