Tuesday, June 30, 2009

माउंट आबू


सिरोही जिले में गुजरात की सीमा से सटी अरावली पर्वत श्रंखला के दक्षिण पश्चिम में स्थित माउन्ट आबू राजस्थान का एक मात्र पर्वतीय पर्यटन स्थल है । कहा जाता है की इस स्थान पर 33 करोड़ देवी देवता विचरण करते हैं शायद इसीलिए इस स्थान को देव भूमि कहा जाता है । यहाँ वो सब कुछ है जो एक hill stations पर होना चाहिए झील का किनारा , ऊँचे घने वृक्ष, ऊँचे-नीचे टेड़े-मेढ़े रास्ते, डूबते सूरज का नजारा सब कुछ मिलेगा यहाँ । समुद्र तल से 1219 मीटर की ऊंचाई पर स्थित माउन्ट आबू में ज्यादातर लोग गर्मियों में आते हैं । वेसे तो यहाँ हर समय सेलानी आते हैं मगर गर्मियों में यहाँ हर समय सेलानियों का सेलाब रहता है

नक्की झील

नक्की झील mount abu का प्रमुख आकर्षण है इस सुंदर झील के किनारे एक सुंदर बगीचा है । यहाँ शाम के समय घूमने और बोटिंग के लिए पर्यटकों का हुजूम उमड़ पड़ता है । नक्की झील राजस्थान की सबसे ऊँची झील है एक किवदंती है कि इसका निर्माण देवताओं ने अपने नाखूनों से खोद कर किया था इसीलिए इसका नाम नक्की झील पड़ा । यह झील सर्दियों में अक्सर जम जाया करती है . झील के किनारे ही यहाँ का मुख्य बाज़ार है जहाँ शाम के समय मेला सा लगा रहता है । इस बाजार की वस्तुओं में अधिकतर राजस्थानी व गुजराती छाप नजर आती है ।

देलवाड़ा मंदिर

नक्की झील से 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह जेन मंदिर पांच मंदिरों का समूह है । बाहर से दिखने में साधारण मगर अदंर संगमरमर पर शानदार कारीगिरी देखते ही मन प्रशंषा से भर उठता है । इस मंदिर का निर्माण 11वीं से 13वीं सदी के बीच हुआ था । प्रमुख मंदिर में 52 छोटे मंदिरों वाला गलियारा है जिनमे प्रत्येक में जेन तीर्थकरों की प्रतिमाएं स्थापित हैं । कहा जाता है कि इस मंदिर को बनाने में 1500 कारीगरों ने 14 वर्ष तक काम किया था तब जाकर यह खूबसूरत मंदिर तैयार हुआ । उस समय इस बनाने में करीब 12 करोड़ 53 लाख रुपए खर्च हुए थे ।

अचलगड़ किला
देलवाड़ा मंदिर से 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह किला परमार राजाओं द्वारा बनवाया गया था बाद में राणा कुंभा ने इसका पुनर्निर्माण करवाया । यहाँ भगवान शिव का मंदिर है जो कि अचलेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है । शिव के साथ ही यहाँ उनकी सवारी नंदी के दर्शन भी किए जा सकते हैं कहा जाता है कि यहाँ पर भगवान शिव के पेरों के निशान हैं । मंदिर के पीछे एक कुंड है जो मंदाकिनी कुंड के नाम से जाना जाता है . यहाँ 16वीं शताब्दी में बने कलात्मक जैन मंदिर भी हैं । यहाँ घूमने के लिए यहाँ के नन्हे गाइड जरुर साथ ले लें क्योंकि ये अपनी लच्छेदार भाषा में यहाँ का इतहास भी बताते हैं जो बड़ा ही रोचक लगता है ।

अर्बुदा देवी मंदिर
mount abu से 3 किलोमीटर दूर पहाड़ी पर स्थित यह मंदिर यहाँ की अराध्य देवी का मंदिर है जो अधर देवी, अर्बुदा देवी एंव अम्बिका देवी के नाम से प्रसिद्द है । यह मंदिर यहाँ के लोकप्रिय तीर्थ स्थलों में से एक है । यह मंदिर एक प्राकर्तिक गुफा में प्रतिष्ठित है पास ही नव दुर्गा,गणेश जी और नीलकंठ महादेव मंदिर भी स्थित है । मंदिर तक जाने के लिए 365 सीढ़ियों का रास्ता है रस्ते में सुंदर द्रश्यावली होने के कारण सीढियाँ कब ख़त्म हो जाती हैं पता ही नही चलता । ऊपर पहुँचने के बाद यहाँ के सुंदर द्रश्य और शान्ति मन मोह लेती है और सारी थकान पल भर में ही दूर हो जाती है


सनसेट पॉइंट

mount abu में नक्की झील से करीब 1.5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस स्थान से डूबते हुए सूरज के सुंदर नज़ारे को देखा जा सकता है । यहाँ सूर्यास्त के समय आकाश के बदलते रंगों की छटा देखने के लीये पर्यटकों का हुजूम रहता है ।


टोड रौक

mount abu में नक्की झील के पश्चिम में स्थित एक मेंढक के आकार की चट्टान है जिसे टोड रौक के नाम से जन जाता है । इस मेंढक के आकार से मिलती चट्टान को देखकर यूँ प्रतीत होता है जेसे यह मेंढक अभी झील में कूद पड़ेगा । इसी के पास एक और चट्टान है जिसे नन रौक के नाम से जाना जाता है यह चट्टान घूँघट निकाले हुई स्त्री के समान दिखती है । ये दोनों चट्टानें दूर से पर्यटकों को आकर्षित करती हैं ।


गुरु शिखर

गुरु शिखर mount abu और अरावली पर्वत माला की सबसे ऊँची चोटी है । एटलस के अनुसार इसकी ऊंचाई 1722 मीटर है । यह माउंट आबू से 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है । यहाँ पहुँच कर एसा लगता है जैसे बादलों के पास पहुँच गए हों यहाँ की शान्ति मन को छू लेती है और यहाँ से नीचे का नजारा बड़ा ही सुंदर दिखता है । यहाँ भगवान विष्णु के अवतार दत्तात्रेय का एक छोटा सा मन्दिर बना है जिसके पास ही रामानंद के चरण चिन्ह बने हुए हैं । मन्दिर के पास ही एक पीतल का घंटा लगा हुआ है जो माउंट आबू को देख रहे संतरी का आभास कराता है


पीस पार्क
गुरु शिखर मार्ग पर ब्रह्मकुमारियों द्वारा बनाया गया यह पार्क प्राकर्तिक सोंदर्य का अनूठा नमूना है यह बहुत ही व्यवस्थित पार्क है कई तरह के गुलाबों की किस्में, फूलों की क्यारियां, रौक गार्डन, घांस और बांसों से बनी झोंपडियाँ, झूले आदि बने हैं यहॉ बर्हृमाकुमारी समुदाय का वर्ल्ड स्प्रीचुअल यूनिवर्ससिटी " शान्ति भवन" है। यहॉ के विशाल हाल मे तकरीबन 3500-4000 लोगो के बैठने कि जगह है, और ट्रान्सलेटर माइक्रो फोन द्वारा 100 भाषाओ में व्याख्यान सुने जा सकते है।

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Monday, June 29, 2009

पीस पार्क

गुरु शिखर मार्ग पर ब्रह्मकुमारियों द्वारा बनाया गया यह पार्क प्राकर्तिक सोंदर्य का अनूठा नमूना है । यह बहुत ही व्यवस्थित पार्क है कई तरह के गुलाबों की किस्में, फूलों की क्यारियां, रौक गार्डन, घांस और बांसों से बनी झोंपडियाँ, झूले आदि बने हैं । यहॉ बर्हृमाकुमारी समुदाय का वर्ल्ड स्प्रीचुअल यूनिवर्ससिटी "ॐ शान्ति भवन" है। यहॉ के विशाल हाल मे तकरीबन ३५००-४००० लोगो के बैठने कि जगह है, और ट्रान्सलेटर माइक्रो फोन द्वारा 100 भाषाओ में व्याख्यान सुने जा सकते है।

यह भी देखें -
mount abu -1
mount abu -2
mount abu -3
mount abu -4
mount abu -5
mount abu -6
mount abu -7
mount abu -8

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Sunday, June 28, 2009

अर्बुदा देवी मंदिर

mount abu से 3 किलोमीटर दूर पहाड़ी पर स्थित यह मंदिर यहाँ की अराध्य देवी का मंदिर है जो अधर देवी, अर्बुदा देवी एंव अम्बिका देवी के नाम से प्रसिद्द है । यह मंदिर यहाँ के लोकप्रिय तीर्थ स्थलों में से एक है । यह मंदिर एक प्राकर्तिक गुफा में प्रतिष्ठित है पास ही नव दुर्गा,गणेश जी और नीलकंठ महादेव मंदिर भी स्थित है । मंदिर तक जाने के लिए 365 सीढ़ियों का रास्ता है रस्ते में सुंदर द्रश्यावली होने के कारण सीढियाँ कब ख़त्म हो जाती हैं पता ही नही चलता । ऊपर पहुँचने के बाद यहाँ के सुंदर द्रश्य और शान्ति मन मोह लेती है और सारी थकान पल भर में ही दूर हो जाती है


यह भी देखें -
mount abu -1
mount abu -2
mount abu -3
mount abu -4
mount abu -5
mount abu -6
mount abu -7




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अचलगड़ किला

देलवाड़ा मंदिर से 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह किला परमार राजाओं द्वारा बनवाया गया था बाद में राणा कुंभा ने इसका पुनर्निर्माण करवाया । यहाँ भगवान शिव का मंदिर है जो कि अचलेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है । शिव के साथ ही यहाँ उनकी सवारी नंदी के दर्शन भी किए जा सकते हैं कहा जाता है कि यहाँ पर भगवान शिव के पेरों के निशान हैं । मंदिर के पीछे एक कुंड है जो मंदाकिनी कुंड के नाम से जाना जाता है . यहाँ 16वीं शताब्दी में बने कलात्मक जैन मंदिर भी हैं । यहाँ घूमने के लिए यहाँ के नन्हे गाइड जरुर साथ ले लें क्योंकि ये अपनी लच्छेदार भाषा में यहाँ का इतहास भी बताते हैं जो बड़ा ही रोचक लगता है ।


यह भी देखें -
mount abu -1
mount abu -2
mount abu -3
mount abu -4
mount abu -5
mount abu -6

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Friday, June 26, 2009

गुरु शिखर


गुरु शिखर mount abu और अरावली पर्वत माला की सबसे ऊँची चोटी है । एटलस के अनुसार इसकी ऊंचाई 1722 मीटर है । यह माउंट आबू से 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है । यहाँ पहुँच कर एसा लगता है जैसे बादलों के पास पहुँच गए हों यहाँ की शान्ति मन को छू लेती है और यहाँ से नीचे का नजारा बड़ा ही सुंदर दिखता है । यहाँ भगवान विष्णु के अवतार दत्तात्रेय का एक छोटा सा मन्दिर बना है जिसके पास ही रामानंद के चरण चिन्ह बने हुए हैं । मन्दिर के पास ही एक पीतल का घंटा लगा हुआ है जो माउंट आबू को देख रहे संतरी का आभास कराता है ।


यह भी देखें -
mount abu -1
mount abu -2
mount abu -3
mount abu -4
mount abu -5

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Tuesday, June 23, 2009

टोड रौक


mount abu में नक्की झील के पश्चिम में स्थित एक मेंढक के आकार की चट्टान है जिसे टोड रौक के नाम से जन जाता है । इस मेंढक के आकार से मिलती चट्टान को देखकर यूँ प्रतीत होता है जेसे यह मेंढक अभी झील में कूद पड़ेगा । इसी के पास एक और चट्टान है जिसे नन रौक के नाम से जाना जाता है यह चट्टान घूँघट निकाले हुई स्त्री के समान दिखती है । ये दोनों चट्टानें दूर से पर्यटकों को आकर्षित करती हैं ।

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Monday, June 22, 2009

सनसेट पॉइंट


mount abu में नक्की झील से करीब 1.5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस स्थान से डूबते हुए सूरज के सुंदर नज़ारे को देखा जा सकता है । यहाँ सूर्यास्त के समय आकाश के बदलते रंगों की छटा देखने के लीये पर्यटकों का हुजूम रहता है ।

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Sunday, June 21, 2009

नक्की झील


नक्की झील mount abu का प्रमुख आकर्षण है इस सुंदर झील के किनारे एक सुंदर बगीचा है । यहाँ शाम के समय घूमने और बोटिंग के लिए पर्यटकों का हुजूम उमड़ पड़ता है । नक्की झील राजस्थान की सबसे ऊँची झील है एक किवदंती है कि इसका निर्माण देवताओं ने अपने नाखूनों से खोद कर किया था इसीलिए इसका नाम नक्की झील पड़ा । यह झील सर्दियों में अक्सर जम जाया करती है . झील के किनारे ही यहाँ का मुख्य बाज़ार है जहाँ शाम के समय मेला सा लगा रहता है । इस बाजार की वस्तुओं में अधिकतर राजस्थानी व गुजराती छाप नजर आती है ।

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Saturday, June 20, 2009

देलवाड़ा मंदिर


नक्की झील से 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह जेन मंदिर पांच मंदिरों का समूह है । बाहर से दिखने में साधारण मगर अदंर संगमरमर पर शानदार कारीगिरी देखते ही मन प्रशंषा से भर उठता है । इस मंदिर का निर्माण 11वीं से 13वीं सदी के बीच हुआ था । प्रमुख मंदिर में 52 छोटे मंदिरों वाला गलियारा है जिनमे प्रत्येक में जेन तीर्थकरों की प्रतिमाएं स्थापित हैं । कहा जाता है कि इस मंदिर को बनाने में 1500 कारीगरों ने 14 वर्ष तक काम किया था तब जाकर यह खूबसूरत मंदिर तैयार हुआ । उस समय इस बनाने में करीब 12 करोड़ 53 लाख रुपए खर्च हुए थे ।

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Thursday, June 18, 2009

माउंट आबू


सिरोही जिले में गुजरात की सीमा से सटी अरावली पर्वत श्रंखला के दक्षिण पश्चिम में स्थित माउन्ट आबू राजस्थान का एक मात्र पर्वतीय पर्यटन स्थल है । कहा जाता है की इस स्थान पर 33 करोड़ देवी देवता विचरण करते हैं शायद इसीलिए इस स्थान को देव भूमि कहा जाता है । यहाँ वो सब कुछ है जो एक hill stations पर होना चाहिए झील का किनारा, ऊँचे घने वृक्ष, ऊँचे-नीचे टेड़े-मेढ़े रास्ते, डूबते सूरज का नजारा सब कुछ मिलेगा यहाँ । समुद्र तल से 1219 मीटर की ऊंचाई पर स्थित माउन्ट आबू में ज्यादातर लोग गर्मियों में आते हैं । वेसे तो यहाँ हर समय सेलानी आते हैं मगर गर्मियों में यहाँ हर समय सेलानियों का सेलाब रहता है

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Wednesday, June 17, 2009

जोधपुर

थार रेगिस्तान के किनारे बसा जोधपुर जिसे सूर्य नगरी के नाम से भी जाना जाता है । इस शहर को 1459 में राव जोधा ने बसाया था उन्ही के नाम पर इस शहर का नाम जोधपुर पडा़ । यह राजस्थान का दूसरा सबसे बडा़ शहर है । जोधपुर अपनी सांस्क्रतिक विरासत और एतिहासिक धरोहर के लीये संसार भर में मशहूर है । यहां का किला व महल इस शहर के राजसी गोरव की मिसाल है ओर पर्यटकों के आकर्शण का केन्द्र है । साल में एक बार आयोजित होने आयोजित वाला मारवाड़ समारोह शहर के प्रमुख सांस्क्रतिक समारोह के रूप में मनाया जाता है ।

मेहरान गढ़ का किला
125 मीटर ऊंची पहाड़ी पर स्थित 5 किलोमीटर लंबा भव्य किला राजस्थान की विराट इमारतों में से एक है । यह किला मयूर ध्वज के नाम से भी जाना जाता है । बाहर से अद्रश्य घुमावदार सड़कों से जुडे़ इस किले में 4 द्वार हैं । किले में कई भव्य महल हैं इनमें मोती महल, फूल महल, शीश महल, सिलेह खाना, ओर दोलत खाना प्रमुख हैं । किले के अदभुत नक्काशीदार दरवाजे ओर जालीदार खिड़कीयां महल की खूबसूरती को बयां करती है । किले में शाही साजोसामान, पालकीयों, संगीत वाद्यों, पोशाकों व विभिन्न शैलीयों के चित्रों का संग्रह भी है जो देखने लायक है ।

उम्मेद भवन पैलेस
एतिहासिक रूप से यह भवन बहुत महत्वपूर्ण है यह महल 20वीं सदी की एकमात्र ऎसी इमारत है जिसका निर्माण आकाल राहत परियोजना के तहत हुआ था इस महल से आकाल पीड़ित लगभग 3000 लोगों को कई वर्ष तक रोजगार मिला था । लगभग 20 एकड़ में फैले बलुआ पत्थरों से निर्मित यह महल 16 वर्षों में तैयार हुआ था । 183 फुट ऊंचे गुंबद वाले इस महल में 300 से भी ज्यादा कमरे हैं । इस महल के आधे हिस्से को पांच सितारा होटल में तब्दील कर दीया गया है ।

जसवंत थडा़
यह मेहरानगढ़ किले के पास स्थित एक छोटी सी पहाडी़ पर निर्मित महाराजा जसवंत सिंह द्वतीय का स्मारक है । सफेद संगमरमर से निर्मित यह स्मारक जोधपुर के इतिहास की याद दिलाता है ।







मंडोर गार्डन

जोधपुर से 9 किलोमीटर दूर मारवाड़ की प्राचीन राजधानी मंडोर में जोधपुर के शासकों के स्मारक हैं । यहां कई ऊंचे-ऊंचे चट्टानी चबूतरे हैं व एक बड़ी चट्टान में तराशी हुई देवी देवताओं की पंद्रह आक्रतीयां हैं । अपने आकर्षक बगीचौं के कारण यह स्थान एक प्रचलित पिकनिक स्थल बन गया है ।


बालसमंद झील

इस सुंदर झील का निर्माण ईसवीं सन् 1159 में हुआ था। तीन तरफ पहाडी़यों से घिरी यह झील उम्मेद भवन की खूबसूरती में चार चांद लगाती है । झील के बीच बने  भव्य  महल का भीतरी भाग यूरोपियन स्टाइल का है मगर बाहरी दीवारें परंपरागत नक्काशीदार हैं । यहां खूबसूरत बगीचे भी हैं। भ्रमण करने के लिए यह एक रमणीय स्थल है।


कायलाना झील

शहर से 11 किलोमीटर दूर स्थित यह झील पिकनिक स्पाट के रूप में प्रसिद्ध है । यहां बगीचे हैं ओर बोटिंग करने की सुविधा है । शहर से दूर और खूबसूरत स्थल होने के कारण यह एक सुंदर पर्यटन स्थल है ।

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Tuesday, June 16, 2009

कायलाना झील

शहर से 11 किलोमीटर दूर स्थित यह झील पिकनिक स्पाट के रूप में प्रसिद्ध है । यहां बगीचे हैं ओर बोटिंग करने की सुविधा है । शहर से दूर और खूबसूरत स्थल होने के कारण यह एक सुंदर पर्यटन स्थल है ।

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Monday, June 15, 2009

बालसंमद झील

इस सुंदर झील का निर्माण ईसवीं सन् 1159 में हुआ था। तीन तरफ पहाडी़यों से घिरी यह झील उम्मेद भवन की खूबसूरती में चार चांद लगाती है । झील के बीच बने  भव्य  महल का भीतरी भाग यूरोपियन स्टाइल का है मगर बाहरी दीवारें परंपरागत नक्काशीदार हैं । यहां खूबसूरत बगीचे भी हैं। भ्रमण करने के लिए यह एक रमणीय स्थल है।

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Sunday, June 14, 2009

मंडोर गार्डन

जोधपुर से 9 किलोमीटर दूर मारवाड़ की प्राचीन राजधानी मंडोर में जोधपुर के शासकों के स्मारक हैं । यहां कई ऊंचे-ऊंचे चट्टानी चबूतरे हैं व एक बड़ी चट्टान में तराशी हुई देवी देवताओं की पंद्रह आक्रतीयां हैं । अपने आकर्षक बगीचौं के कारण यह स्थान एक प्रचलित पिकनिक स्थल बन गया है ।

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Saturday, June 13, 2009

जसवंत थडा़

यह मेहरानगढ़ किले के पास स्थित एक छोटी सी पहाडी़ पर निर्मित महाराजा जसवंत सिंह द्वतीय का स्मारक है । सफेद संगमरमर से निर्मित यह स्मारक जोधपुर के इतिहास की याद दिलाता है ।

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Friday, June 12, 2009

उम्मेद भवन पैलेस

एतिहासिक रूप से यह भवन बहुत महत्वपूर्ण है यह महल 20वीं सदी की एकमात्र ऎसी इमारत है जिसका निर्माण आकाल राहत परियोजना के तहत हुआ था इस महल से आकाल पीड़ित लगभग 3000 लोगों को कई वर्ष तक रोजगार मिला था । लगभग 20 एकड़ में फैले बलुआ पत्थरों से निर्मित यह महल 16 वर्षों में तैयार हुआ था । 183 फुट ऊंचे गुंबद वाले इस महल में 300 से भी ज्यादा कमरे हैं । इस महल के आधे हिस्से को पांच सितारा होटल में तब्दील कर दीया गया है ।

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Thursday, June 11, 2009

मेहरानगढ़ का किला

125 मीटर ऊंची पहाड़ी पर स्थित काफी विस्त्रित क्षेत्र में बना यह भव्य किला राजस्थान की विराट इमारतों में से एक है । यह किला मयूर ध्वज के नाम से भी जाना जाता है । बाहर से अद्रश्य घुमावदार सड़कों से जुडे़ इस किले में 4 द्वार हैं । किले में कई भव्य महल हैं इनमें मोती महल, फूल महल, शीश महल, सिलेह खाना, ओर दोलत खाना प्रमुख हैं । किले के अदभुत नक्काशीदार दरवाजे ओर जालीदार खिड़कीयां महल की खूबसूरती को बयां करती है । किले में शाही साजोसामान, पालकीयों, संगीत वाद्यों, पोशाकों व विभिन्न शैलीयों के चित्रों का संग्रह भी है जो देखने लायक है ।

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Wednesday, June 10, 2009

जोधपुर

थार रेगिस्तान के किनारे बसा जोधपुर जिसे सूर्य नगरी के नाम से भी जाना जाता है । इस शहर को 1459 में राव जोधा ने बसाया था उन्ही के नाम पर इस शहर का नाम जोधपुर पडा़ । यह राजस्थान का दूसरा सबसे बडा़ शहर है । जोधपुर अपनी सांस्क्रतिक विरासत और एतिहासिक धरोहर के लीये संसार भर में मशहूर है । यहां का किला व महल इस शहर के राजसी गोरव की मिसाल है ओर पर्यटकों के आकर्शण का केन्द्र है । साल में एक बार आयोजित होने आयोजित वाला मारवाड़ समारोह शहर के प्रमुख सांस्क्रतिक समारोह के रूप में मनाया जाता है ।

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जैसलमेर


राजस्थान के पश्चिमी छोर पर स्थित जैसलमेर रेतीली भूमि होने की वजह से पहले "मेर" के नाम से जाना जाता था । 1156 में यहाँ के राजपूत राव जेसल ने जैसलमेर को अपनी राजधानी बनाया और 12 वर्ष तक शासन किया । राव जेसल के नाम इस जगह का नाम बदल कर जैसलमेर हो गया । जैसलमेर मध्य युग में व्यापारियों का प्रमुख पड़ाव हुआ करता था और काफी संपन्न था कई व्यापारियों ने यहाँ अपने महल और हवेलियाँ बनवाए थे । रेतीले राजस्थान को परिभाषित कराने वाला जेसलमेर अपनी शानदार नक्काशीदार हवेलियों, गलियों , और प्राचीन मंदिरों की वजह से पर्यटकों को खूब आकर्षित करता है । jaihgggdsalmer,राजस hthan,


सोनार का किला

जैसलमेर की त्रिकुटा पहाड़ी पर बने इस विशाल किले का निर्माण 1156 में राव जैसल ने करवाया था । पीले बलुआ पत्थरों से बना यह किला इस उजाड़ रेगिस्तान में किसी संतरी की भांति खड़ा है । यह किला सूर्य की रोशनी में सोने के समान चमकता है इसी सुनहरी आभा के कारण इस का नाम सोनार का किला पड़ा । इस किले के 99 बुर्ज हें तथा सूरज पोल, अक्षय पोल, गणेश पोल एंव हवा पोल 4 प्रमुख द्वार हैं । इस किले के परकोटे में पूरा नगर समाया हुआ है । इस किले में कई संकरी गलियां हैं जिनमें कई ख़ूबसूरत हवेलियाँ हैं । jaisalmer RAJASTHAN

पटवों की हवेली

जैसलमेर के धनी व्यापारियों ने यहाँ अपनी महलनुमा हवेलियाँ बनवाई थी इन हवेलियों की दीवारों ,खिड़कियों, छज्जों, में इतनी बारीक़ जालियों, नक्काशी और बेलबूटों का महीन और सुंदर कम कीया गया है कि आँखें विस्मित हो जाती हैं । यह हवेलियाँ लगभग 300 साल पुरानी हैं इन्हें आज भी पर्यटकों के लिए संभाल के रखा गया है । इन हवेलियों में सबसे विशाल व भव्य हवेलियों में से एक है पटवों की हवेली। 1805 में बनी यह हवेली 7 छोटी हवेलियों का समूह है एंव यहाँ की सभी हवेलियों में सबसे प्राचीन है । सरकार द्वारा संरक्षित यह हवेली उस समय की शानो-शोकत भरी जीवन शैली की मिसाल है । jaisalmer rajasthan


सालिम सिंह की हवेली
महाराजा रावल गजसिंह के प्रधानमंत्री सालिम सिंह के द्वारा बनवाई गई इस 200 साल पुरानी हवेली में अलग अलग डिजाइनों वाले 38 छज्जे (बालकनी ) बने हुए हैं । इस हवेली में मोर के आकार के बारीक नक्काशीदार कई प्रकोष्ठ बने हैं । इस हवेली की शानदार कारीगरी पर्यटकों को खूब लुभाती है ये हवेलियाँ विदेशी पर्यटकों का खास आकर्षण रहती हैं ।

गड़सीसर झील
रेगिस्तानी समुद्र के बीच बनी यह खूबसूरत झील एक अनोखी अनुभूति देती है । यह प्राकर्तिक वर्षा के पानी की कृतिम झील है जो पर्यटकों का विशेष आकर्षण है । यह झील नगर के दक्षिणी हिस्से में स्थित है जो कभी जैसलमेर का प्रवेश द्वार हुआ करता था ।


बड़ा बाग़
बड़ा बाग़ का निर्माण महारावल जैत सिंह द्वारा 16 वीं सदी में शुरू करवाया गया था लेकिन ये पूरा उनके पुत्र लूनाकरण के द्वारा हुआ । अपने नाम के अनुसार ही यह उस समय का सबसे बड़ा बाग़ था । इस बाग़ में यहाँ के शासकों ने अपने पूर्वजों की याद में स्मारक बनवाए थे इन स्मारकों को छतरी कहा जाता है । इन छतरियों में सबसे पुरानी महाराजा जैत सिंह की छतरी है ये छतरी पर्यटकों का विशेष आकर्षण है ।


सैम सैंड ड्यूंस
जैसलमेर आएं ओर बालू के टीले न घूमे तो ये यात्रा कैसे पूरी हो सकती है । जैसलमेर से 42 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है सैम सैंड ड्यूंस (बालू के टीले) ये रेत के टीलों का अथाह सागर असल राजस्थान का एहसास कराता है । यहां से सूर्यास्त का नजारा बड़ा ही खूबसूरत दिखता है एंव यहां मरुस्थल में ऊंट सवारी का मजा ही कुछ और है । यहां कई सांस्क्रतिक कार्यक्रम होते हैं उनका आनन्द यहां बने निजी व राजस्थान पर्यटन विकास निगम (R T D C) के टैंटो़ में रात
गुजार कर लीया जा सकता है । वैसे यहां ठहरने की कोई और विशेश व्यवस्था नहीं है ।

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Tuesday, June 9, 2009

सैम सैंड ड्यूंस

जैसलमेर आएं ओर बालू के टीले न घूमे तो ये यात्रा कैसे पूरी हो सकती है । जैसलमेर से 42 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है सैम सैंड ड्यूंस (बालू के टीले)  ये रेत के टीलों का अथाह सागर असल राजस्थान का एहसास कराता है । यहां से सूर्यास्त का नजारा बड़ा ही खूबसूरत दिखता है एंव यहां मरुस्थल में ऊंट सवारी का मजा ही कुछ और है । यहां कई सांस्क्रतिक कार्यक्रम होते हैं उनका आनन्द यहां बने निजी व राजस्थान पर्यटन विकास निगम (R T D C)  के टैंटो़ में रात
गुजार कर लीया जा सकता है । वैसे यहां ठहरने की कोई और विशेश व्यवस्था नहीं है ।

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Monday, June 8, 2009

बड़ा बाग़


बड़ा बाग़ का निर्माण महारावल जैत सिंह द्वारा 16 वीं सदी में शुरू करवाया गया था लेकिन ये पूरा उनके पुत्र लूनाकरण के द्वारा हुआ । अपने नम के अनुसार ही यह उस समय का सबसे बड़ा बाग़ था । इस बाग़ में यहाँ के शासकों ने अपने पूर्वजों की याद में स्मारक बनवाए थे इन स्मारकों को छतरी कहा जाता है । इन छतरियों में सबसे पुरानी महाराजा जैत सिंह की छतरी है ये छतरी पर्यटकों का विशेष आकर्षण है ।

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Sunday, June 7, 2009

गड़सीसर झील


रेगिस्तानी समुद्र के बीच बनी यह खूबसूरत झील एक अनोखी अनुभूति देती है । यह प्राकर्तिक वर्षा के पानी की कृतिम झील है जो पर्यटकों का विशेष आकर्षण है । यह झील नगर के दक्षिणी हिस्से में स्थित है जो कभी जैसलमेर का प्रवेश द्वार हुआ करता था ।

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Saturday, June 6, 2009

सालिम सिंह की हवेली


महाराजा रावल गजसिंह के प्रधानमंत्री सालिम सिंह के द्वारा बनवाई गई इस 200 साल पुरानी हवेली में अलग अलग डिजाइनों वाले 38 छज्जे (बालकनी ) बने हुए हैं । इस हवेली में मोर के आकार के बारीक नक्काशीदार कई प्रकोष्ठ बने हैं । इस हवेली की शानदार कारीगरी पर्यटकों को खूब लुभाती है ये हवेलियाँ विदेशी पर्यटकों का खास आकर्षण रहती हैं ।

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Friday, June 5, 2009

पटवों की हवेली


जैसलमेर के धनी व्यापारियों ने यहाँ अपनी महलनुमा हवेलियाँ बनवाई थी इन हवेलियों की दीवारों ,खिड़कियों, छज्जों, में इतनी बारीक़ जालियों, नक्काशी और बेलबूटों का महीन और सुंदर कम कीया गया है कि आँखें विस्मित हो जाती हैं । यह हवेलियाँ लगभग 300 साल पुरानी हैं इन्हें आज भी पर्यटकों के लिए संभाल के रखा गया है । इन हवेलियों में सबसे विशाल व भव्य हवेलियों में से एक है पटवों की हवेली। 1805 में बनी यह हवेली 7 छोटी हवेलियों का समूह है एंव यहाँ की सभी हवेलियों में सबसे प्राचीन है । सरकार द्वारा संरक्षित यह हवेली उस समय की शानो-शोकत भरी जीवनशैली की मिसाल है । jaisalmer rajasthan

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Thursday, June 4, 2009

सोनार का किला


जैसलमेर की त्रिकुटा पहाड़ी पर बने इस विशाल किले का निर्माण 1156 में राव जैसल ने करवाया था । पीले बलुआ पत्थरों से बना यह किला इस उजाड़ रेगिस्तान में किसी संतरी की भांति खड़ा है । यह किला सूर्य की रोशनी में सोने के समान चमकता है इसी सुनहरी आभा के कारण इस का नाम सोनार का किला पड़ा । इस किले के 99 बुर्ज हें तथा सूरज पोल, अक्षय पोल, गणेश पोल एंव हवा पोल 4 प्रमुख द्वार हैं । इस किले के परकोटे में पूरा नगर समाया हुआ है । इस किले में कई संकरी गलियां हैं जिनमें कई ख़ूबसूरत हवेलियाँ हैं । jaisalmer RAJASTHAN

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Wednesday, June 3, 2009

जैसलमेर


राजस्थान के पश्चिमी छोर पर स्थित जैसलमेर रेतीली भूमि होने की वजह से पहले "मेर" के नम से जाना जाता था । 1156 में यहाँ के राजपूत राव जेसल ने जैसलमेर को अपनी राजधानी बनाया और 12 वर्ष तक शासन किया । राव जेसल के नाम इस जगह का नाम बदल कर जैसलमेर हो गया । जैसलमेर मध्य युग में व्यापारियों का प्रमुख पड़ाव हुआ करता था और काफी संपन्न था कई व्यापारियों ने यहाँ अपने महल और हवेलियाँ बनवाए थे । रेतीले राजस्थान को परिभाषित कराने वाला जेसलमेर अपनी शानदार नक्काशीदार हवेलियों, गलियों , और प्राचीन मंदिरों की वजह से पर्यटकों को खूब आकर्षित करता है । jaihgggdsalmer,राजस hthan,

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उदयपुर

image रावली की हरी भरी पहाडी़यों से घिरी झीलों के शहर उदयपुर की स्थापना 1599 में महाराजा उदय सिहं ने की थी । झीलों से भरे इस शहर को पूर्व का वेनिस भी कहा जाता है । महलों, झीलों एंव बगीचों के इस शहर का अतीत काफी वैभवपूर्ण रहा है । उदयपुर के प्रमुख स्थल हें सिटी पैलेस, पिछोला लेक, लेक पैलेस, सहेलीयों की बावडी़, जगमंदिर पैलेस, फतेह सागर झील, महाराणा प्रताप स्मारक, भारतीय लोक कला मंडल आदि । udaipur

सिटी पैलेस




सिटी पैलेस की शुरूआत महाराणा उदय सिंह ने 1569 में करवाई उसके बाद के कई शासकों ने इसे अपने-अपने शासन काल में बनवाया । यह महल 11 चरणो में पूरा हुआ लेकिन आश्चर्य यह हे कि इसके कई चरणो में बनने के बावजूद इसमें तनिक भी अंतर नहीं है । सिटी पैलेस चीनी व यूरोपियन वास्तुकला का बेहतरीन नमूना है । किले के अंदर गलियारों, मंडपों, प्रांगणो व लटकते बगीचों का समूह है । इसमें शाही साजोसामान का बडा़ संग्रहालय भी है जिसे आज भी बड़े करीने से सुरक्षित रखा गया है sity palace udaipur rajasthan india



पिछौला लैक

इस झील की खूबसूरती का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता हे कि इसकी खूबसूरती से आकर्शित होकर महाराजा उदय सिहं ने सिटी पैलेस इसके किनारे पर बनवाया था । बद में इस झील का विस्तार हुआ ओर इसके बीच में जल महल, जग मंदिर, जग निवास का निर्माण हुआ । इस खूबसूरत झील में नोका विहार का आनंद भी लीया जा सकता है india rajasthan udaipur



सहेलीयों की बावडी़

उदयपुर की रानीयों व राजकुमारीओं के विश्राम के लीये बनवाई गई थी सहेलीयों की बावडी़ । हरी-भरी वादीयों से घिरे इस विश्राम स्थल में 4 बावडी़यां तथा कई फव्वारे लगे हुए हैं उस समय बिजली व मोटरें नहीं होती थी इसीलीये इसे पिछौला लैक से कम ऊंचाई पर बसाया गया था ताकि पानी के दबाव से फव्वारे खुद ही चलें । ये फव्वारे आज भी बिना किसी पंप के चलते हैं । india rajasthan udaipur


फतेह सागर झील
पिछोला झील के उत्तर में स्थित इस सुंदर झील का निर्माण महाराजा जयसिंह ने 1678 में करवाया था महाराजा फतेह सिंह ने इस झील का पुनर्निर्माण करवाया था इसीलिए इसका नाम फतेह सागर झील पड़ा 3 तरफ़ पहाडियों से घिरी यह झील एक नहर द्वारा पिछोला झील से जुड़ी है झील के बिच में नेहरू पार्क है पार्क में एक खूबसूरत रेस्तरां बना है यहां पहुंचने के लिए नाव का सहारा लेना पड़ता है जो कि किराए पर उपलब्ध रहती है udaipur rajasthan

लैक पैलेस


महाराणा जगत सिंह द्वारा 1746 बनवाया गया यह महल दुनिया के खूबसूरत महलों में से एक माना जाता है । पिछौला झील के बीच जग निवास टापू पर बना यह महल लैक पैलेस के नाम से प्रसिद्ध है । इस महल को 1960 में महाराजा भागवत सिंह ने होटल में तब्दील कर दीया था जो आज आलीशान पॉँच सितारा होटल के रूप में दुनिया भर में मशहूर है । आम पर्यटकों के लीये इस महल में प्रवेश पर रोक है फ़िर भी मोटर बोट द्वारा इस महल की खूबसूरती को देखा जा सकता है । udaipur


जग मंदिर पैलेस
पिछौला झील के दछिणी किनारे की तरफ़ एक टापू पर बने इस खूबसूरत महल का निर्माण 1620 में राणा जगत सिंह द्वारा करवाया गया था । दूर से देखने पर संगमरमर और पीले बलुआ पत्थरों से बना यह सुंदर महल दिन की खिली धूप में सोने के समान चमकता है । udaipur



भारतीय लोक कला मंडल
राजस्थान के एतिहासिक संस्कृति को प्रदर्षित करता यह संग्रहालय अन्य संग्रहालयों से अलग है । यहाँ राजिस्थानी पहनावे , गहने , मुखोटे , वाध्य यंत्र , कठपुतलियों और खूबसूरत चित्रकारियों का दुर्लभ संग्रह है । यहाँ का मुख्य आकर्षण कठपुतली शो है जो कि रोज समय - समय पर दिखाए जाते हैं । rajasthan udaipur

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